हाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर
हाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर –
रात हमारे नाम नज़्म लिख गई ।
सुबह गाने लगी दर-ब-दर कि आज बात हो गई ।
दोपहर में तपते हुए पेड़ झूम उठे जैसे शाम हो गई ।
शाम की तनहाई को रात में पनाह मिल गई ।
रात जैसे आज ख़ुद ही सो गई ।
हाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर ।
