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हम आप हैं

वहम-ए-दुई भी कुफ़्र है।


हम सेब हैं।


जिस दिन आप हमसे पहली बार मिले थे

आपने एक नज़र देखा था

एक बार खाया था।


घर के किनारे हमें छोड़ दिया था -

ठीक दरवाज़े के पास,

ना भीतर, ना बाहर

जहां


अब हम पेड़ हैं।


आप आज हम पर चढ़ गये,

सो गये फ़ुर्सत से

कि आपकी पीठ हम पर लग गयी

आप की सांसें पत्तों को छू गईं।


कल हम सेब थे।

आज हम पेड़ हैं।

आज हम आप हैं।



A poem in Hindi with a graphic of a cut apple on the right-hand side.

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Science journalist, communicator and writer

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